अंतर
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| photo: painting of Illaiyaraja |
अब किशोर और कांता खुश
थे क्योंकि उनके पास एक उम्मीद थी, जबकि पाँच साल पहले तक ऐसा नहीं था| उनकी शादी
के पंद्रह साल के बाद भी उनको कोई औलाद नहीं थी जिसकी वजह से कांता को घर में बहुत
ताने सुनने पड़ते थे| अपने जीवन के इस खालीपन के चलते वो कई बार अकेले में रोती
रहती थी और सोचती कि काश उसको भी संतानप्राप्ति का सुख मिले| उसका भी सपना था की वो माँ बने, अपने बच्चे का
लालन-पालन करे, उसको पढ़ाये-लिखाये| इसके लिए उसने खूब मान-मनौती की, काफी उपवास
रखा था। खैर भगवान ने अब उसकी सुन ली और पाँच साल पहले उसको एक बेटी हुई, नाम रखा
रेनू|
उनका गाँव बिहार में
नेपाल की तराई के इलाके में था जिसका शहर से संपर्क काफी कम था| ज़मीन कम होने तथा
आसपास रोज़गार की कोई बेहतर सुविधा भी न होने के कारण गाँव के कुछ लोग बाहर शहरों
में जा कर कमाते थे| किशोर भी झरिया रहता था| कोयले की खदान में किसी ठीक-ठाक ओहदे
पर था, तो सैलरी उन दोनों के लिए तो पर्याप्त थी लेकिन परिवार बड़ा होने की वजह से
उसपर कई और जिम्मेदारियाँ भी थीं| परिवार में माँ-बाप और किशोर को मिलाकर कुल पाँच
भाई थे| किशोर के अलावा सब खेती-बाड़ी करते थे, सभी की शादी हो चुकी थी और उनका
परिवार गाँव में ही रहता था| उसकी पत्नी कांता भी गाँव में ही रहती थी और घर के
काम-काज में अपनी देवरानी जेठानियों का हाथ बटाती थी| घर में कोई भी बहुत पढ़ा-लिखा
नहीं था और औरतें तो बिलकुल भी नहीं लेकिन अब सारे बच्चे गाँव के पास के स्कूल में
जाते थे|
किशोर साल में तीन-चार
बार गाँव आता था हालांकि दूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन काम का दबाव था| वह
जब भी घर आता पूरे घर वालों के लिए कुछ न कुछ लाता और खासकर अपनी बेटी के लिए ढेर
सारी खाने की चीजें, कपड़े और कांता के लिए पैसे| क्योंकि परिवार बड़ा था, सभी साथ
में रहते थे तो हर चीज बांटनी पड़ती थी और सभी बच्चों के माँ-बाप तो उनके साथ थे तो
उन्हें कोई कमी नहीं थी इसलिए कांता रेनू के लिए आये सामान को छुपाकर बक्से में रख
देती और उसे सख्त हिदायत दी गयी थी कि वो खाने-पीने की चीजें घर के और बच्चों से
छुपाकर खाए| लेकिन रेनू थी तो बच्ची ही, अपने हमजोली के चचेरे भाई-बहनों को जलाने
के लिए कभी-कभी दिखाकर खाती| ऐसे में दूसरे बच्चे उसे चिढ़ाते- “फेंक दिहले थरिया,
बलम गईले झरिया, पहुँचले की ना|” यह गाना सुनते ही वो चिढ़ जाती और रोने लगती क्योंकि
उसके पापा झरिया में ही नौकरी करते थे| ऐसे में रेनू रोते-रोते अपनी माँ के पास
जाकर उनकी शिकायत करती, कांता दूसरे बच्चों को डांटती, रेनू को सीने से लगाती और
थोड़ी देर बाद सब ठीक हो जाता|
कांता थी बहुत मेहनती,
डील-डाल में ठीक थी, दुबली पतली, रंग धूप में काम करने से सांवला पड़ गया था| पूरे
घर का खाना साथ बनता था तो चूल्हा-चौका, साफ़-सफाई और जानवरों की देखभाल भी करती थी|
दिनभर काम करना और फिर रात को रेनू को लेकर सो जाना, यही उसकी दिनचर्या थी| उस
ज़माने में जब फ़ोन इक्का दुक्का लोगों के पास ही होता था तब किशोर ने उसे एक फ़ोन दे
रखा था ताकि दिन में एकबार हाल-चाल होता रहे| वो घर में रोज-रोज एक ही काम करके ऊब
चुकी थी, वो चाहती थी की वो भी किशोर के साथ झरिया जाए और रेनू का दाखिला किसी बढ़िया
प्राइवेट स्कूल में करा दे, कई बार किशोर से कहती की वो भी शहर आना चाहती है लेकिन
गाँव का रिवाज़ कि बहू का मतलब गाँव में ही रहे, घर के काम-काज करे, सास-ससुर की
सेवा करे इसलिए ऐसा शायद ही हो पाता| हालांकि कांता अपनी सभी जिम्मेदारी बखूबी
निभा रही थी|
एक दिन किशोर ने फोन
नहीं किया और कांता को फ़ोन मिलाना नहीं आता था, वो बहुत बेचैन थी की क्या हुआ
होगा, इतनी देर हो गयी फोन क्यों नहीं किये और ऐसे ही सोचते-सोचते उसकी आँख लग गयी|
फिर अगली सुबह किशोर का फ़ोन आया, उसने बताया की सब ठीक है और कल सुबह वाली ट्रेन
से वह घर आ रहा है| कांता की परेशानी और बढ़ गयी, उसे लगा की कुछ ठीक नहीं है किशोर
की आवाज़ में भारीपन था| उस पूरी रात वो नहीं सो पायी और घड़ी की तरफ देखती रही|
सुबह हुई, घर की साफ़-सफाई करना था, झाड़ू हाथ में लिया लेकिन ध्यान उसका दरवाज़े पर
था खैर वो काम में लग गयी| तभी किशोर आया| रेनू पापा की तरफ दौड़ी, उन्हें पकड़ लिया
और पूछा - आप मेरे लिए क्या लाये हैं?
किशोर ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और
मुस्कुरा कर एक छोटा सा बैग पकड़ा दिया जिसमे सिर्फ उसके दो जोड़ी कपड़े थे| रेनू को
थोड़ा बुरा लगा क्योंकि इस बार उसके पापा ने उसे गोद में नहीं उठाया, पप्पी नहीं ली
और खाने का सामान भी नहीं लाये थे|
किशोर ने माँ-बाप के
पैर छुए, बाहर बरामदे में बैठा और उसके भाई उससे हाल-चाल पूछने लगे, कांता सब काम
छोड़कर परदे के पीछे से उसे देखने लगी| पहले से कमज़ोर हो चुके हैं, बीमार लग रहे
हैं, लगता है खाना भी ठीक से नहीं खा रहे हैं, ये सब मन में ही सोच रही थी| किशोर
ने बताया की कुछ दिनों से उसकी तबियत ख़राब है काम पर भी नहीं जा पा रहा है तो घर आ
गया| सभी चिंतित थे, कांता का अनुमान सही था|
थोड़ी देर बाद किशोर घर के अन्दर गया
और कांता ने उसके पैर छुए, वो कमरे में बैठा| पास में रेनू भी पलंग पर बैठी और पैर
हिलाने लगी| थोड़ी देर बाद कांता पानी लेकर आई और पूछा - क्या हुआ है
आपको?
किशोर - कुछ नहीं बस
थोड़ी तबियत ठीक नहीं है |
कांता - कब से हुआ
है?
किशोर - यही कोई दस
दिन से |
कांता – (वो चौंक
गयी) आपने बताया क्यों नहीं?
किशोर - क्या बताता
तुम परेशान होती |
कांता - (रुंआसे
आवाज़ में बोली) और आप इतने दिन परेशान थे तो?
किशोर - मैंने सोचा,
ठीक हो जाऊंगा क्या जरुरत है बताने की?
कांता - मैंने तो
कितनी बार कहा है की मुझे भी साथ ले चलते तो मैं खाना बनाकर खिलाती, आपकी देखभाल करती तो ठीक रहते
लेकिन मेरी बात सुनते कहाँ हैं आप? यह कहकर कांता ने मुंह फेर लिया और नाराज़ होकर
एक कोने में बैठ गयी| रेनू उन दोनों का मुंह ताक रही थी|
किशोर मजाक में पूछा
- रेनू तुम मेरे साथ चलोगी?
रेनू बोली - ‘हाँ’
यह कहकर वो खुश हो गयी
कांता - वो कहीं
नहीं जाएगी वो मेरे साथ रहेगी
किशोर - ठीक है तब
तुम भी मेरे साथ चलना
ये कहकर किशोर
मुस्कुराया और पलंग पर लेट गया, रेनू को भी पास में लिटा लिया| कांता भी हंसी और
उसने किशोर के पैर दबाने शुरू किया, वो बातें करने लगे| अचानक शाम को किशोर की
तबियत फिर ख़राब हो गयी, उसके पेट में दर्द हो रहा था, सभी लोग परेशान हो गए|
आननफानन में उसे अस्पताल ले जाया गया| इधर कांता रोने लगी और अपनी माँ का मुंह
देखकर रेनू को भी रोना आ गया, घर के बाकी लोग उसे चुप करा रहे थे| सब लोग उनके
अस्पताल से वापस आने का इंतज़ार कर रहे थे| आधी रात हो गयी, सब लोग अस्पताल से लौटे,
किशोर को गाड़ी से उतारा गया वो अब ठीक था लेकिन बिना मदद के चलने की हालत में नहीं
था| उसे घर में लाया गया, वह पलंग पर लेट गया और कांता ने उससे कुछ खाने के लिए
पूछा पर उसने मना कर दिया| रेनू यह सब देख रही थी उसे बहुत कुछ समझ में नहीं आ रहा
था| थोड़ी देर बाद तीनो सो गए|
सुबह हुई, अब किशोर
की ख़ास देखभाल होने लगी| सभी को चिंता थी कि अगर उसे कुछ हो जाता तो पूरे परिवार
के लिए बहुत मुश्किल होती, आखिर घर के लिए एक बड़ा सहारा जो था| अगले दिन डॉक्टर ने
उसे बुलाया था, उसकी रिपोर्ट आने वाली थी| उसे दुबारा अस्पताल ले जाया गया, वहाँ
डॉक्टर ने बताया की वो एच् आई वी पॉजिटिव मतलब उसे एड्स है| एच आई वी पॉजिटिव?
मतलब? किशोर के भाई ने पूछा| डॉक्टर ने किशोर तथा उसके बड़े भाई को अपने केबिन में
बुलाया और उसे काफी हिदायतें दी कि कैसे रहना है? खाना पीना क्या है? अगर शराब
पीते हो तो छोड़ना पड़ेगा| बाकी सब ठीक है| ये दवाई हर रोज खाना और अस्पताल से हर
महीने ले लेना|
किशोर को यह पता चला
तो वह स्तब्ध रह गया, समझ में नहीं आ रहा था की यह कैसे हुआ? उसके भाई ने भी उसे समझाया,
ढाढ़स बंधाया फिर वो घर की ओर चले| घर जाने पर जब लोगों ने पूछा की क्या हुआ था? तब
बताया गया की कोई सामान्य सी बीमारी है जिसमे इलाज़ लम्बा चलेगा और धीरे-धीरे किशोर
ठीक हो जायेगा| ऐसे वक़्त पर सभी घर वालों ने उसका साथ दिया, ज्यादा सवाल-जवाब नहीं
हुआ|
खैर दवा के असर और
देखभाल की वजह से किशोर की तबियत ठीक होने लगी थी, कांता ने उसकी खूब सेवा की| एक
महीने घर पर रहने के बाद अब वो स्वस्थ हो चुका था, तब उसने सोचा की अब वो वापस चला
जायेगा काम पर| उसने कांता को बताया की वो जाना चाहता है एक महीने से घर पर है और
अब तो वह पूरी तरह से ठीक भी हो गया है| कांता ने पूछा की इस बार वो भी चले, अभी
बीमारी से ठीक हुए हैं तो वहां उसका ख्याल रखेगी लेकिन किशोर ने कहा की अगली बार
वह उसे जरुर लेकर जाएगा| कांता ने भी हामी भर दी|
उसके जाने की तैयारी
होने लगी सामान पैक हो गया, रास्ते के लिए कांता ने पूड़ी सब्जी रख दिया|
कांता - सुनिए! इसे रास्ते
में खा लीजियेगा नहीं तो ख़राब हो जायेगा |
किशोर - ठीक है |
रेनू - पापा अबकी
बार मेरे लिए क्या लायेंगे?
किशोर - ढेर सारा
कपड़ा और मिठाई |
कांता - और दवाई
लेते रहिएगा |
किशोर - ठीक है तुम
चिंता मत करो |
कांता - और पहुँच कर
फ़ोन करियेगा |
किशोर - ठीक |
रेनू - पापा अब आप
कब आयेंगे?
किशोर - बहुत जल्द |
किशोर ने बैग उठाया,
रेनू को गोद में लिया और चूमा| उसकी पत्नी ने उसके पैर छुए और भावुक हो गयी, वो
अपने आंसू नहीं रोक पायी| किशोर घर से निकला और वो उसे जाते हुए देखती रही|
सब कुछ ठीक हो गया,
किशोर को झरिया गए चार महीने हो चुके थे, कांता से उसकी फ़ोन पर रोज बात होती थी और
उसने होली पर आने का वादा किया था|
दिसंबर का महीना था,
कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी| रात का वक़्त था, चांदनी रात थी| घर में खाना बन रहा था,
घर के बाहर बड़े और बच्चे धान की पुआल जलाकर आग ताप रहे थे| कुछ ने आग में आलू भी
रखा था ताकि भुनकर खायेंगे| रेनू भी बैठी थी| उसके चाचा एक कहानी सुना रहे थे, सब
लोग कहानी सुनने में मगन थे| तभी घर में से यकायक किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई| सब
लोग चौंक गए और अन्दर की तरफ भागे| अन्दर गए तो देखा की कांता जमीन पर पड़ी थी और
उसके मुंह से खून निकल रहा था, वो दर्द से चिल्ला रही थी| अपनी माँ को इस हालत में
देखकर रेनू भी तेज-तेज रोने लगी| किसी को समझ में नहीं आ रहा था की यह कैसे हो
गया? कांता को उठाकर चारपाई पर लिटा दिया गया, घर की बाकी औरतों ने बताया की कुछ
दिनों से थोड़ी बीमार लग रही थी लेकिन किसी को कुछ नहीं बताती| घर वालों ने गाड़ी
निकली, कांता को उसमे बैठाया और उसे अस्पताल लेकर गए| इधर रेनू चिल्ला-चिल्लाकर
पूछ रही थी की क्या हुआ है उसकी मम्मी को? कोई कुछ नहीं बता पा रहा था| घरवाले
कांता को लेकर अस्पताल पहुंचे, उसे भर्ती कराया गया लेकिन वह बच नहीं सकी| डॉक्टर
ने बताया कांता को एड्स था|

6 Comments
Realy obsom
ReplyDeleteThank you so much
DeleteLoved the climax. Detailing of characters is good too. Keep writing and updating, all the best.
ReplyDeleteThanks for feedback
DeleteGood sir, best of luck.
ReplyDeletethank you for compliment
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